बागेश्वर. उत्तराखंड के बागेश्वर जिले में सिरकोट गांव के जगदीश चंद्र कुनियाल पिछले 40 सालों से लगातार पेड़ लगाते आ रहे हैं. इस दौरान उन्होंने 40-50 हजार पेड़ लगा दिए हैं. जिसके कारण वहां एक सूख चुके झरने से साल भर पानी बहने लगा है. इस झरने से करीब 300 परिवारों को पानी मिल रहा है. इस झरने का कुछ पानी अब नदी में भी जाता है. जो काम सरकार करोड़ों रुपये खर्च करके भी नहीं कर पाती, उस काम को जगदीश चंद्र कुनियाल ने अकेले अपने परिश्रम, लगन और संकल्प के बूते संभव कर दिखाया है.
जगदीश चंद्र कुनियाल के पिता की मौत 1978 में ही हो गई थी. जिसके कारण आठवीं कक्षा में पढ़ रहे जगदीश कुनियाल को पढ़ाई छोड़नी पड़ी. इसके बाद उन्होंने किसी तरह प्राइवेट हाईस्कूल की परीक्षा पास की. पढ़ाई छोड़ने के बावजूद जगदीश चंद्र कुनियाल को किताबें पढ़ने का बहुत शौक था. गांव में बिजली नहीं थी और मनोरंजन का कोई दूसरा साधन भी नहीं था. उसी समय उत्तराखंड में चिपको आंदोलन भी चल रहा था. जिसके बारे में जगदीश कुनियाल खबरें पढ़ते रहते थे. इससे उनके मन में भी पेड़ लगाने की इच्छा जगी.
बंजर पड़ी 10 एकड़ जमीन में लगाए 40 हजार से ज्यादा पेड़
जगदीश कुनियाल ने अपने घर से करीब 5 किलोमीटर दूर दूसरे गांव में स्थित अपनी 10 एकड़ पुश्तैनी जमीन में पेड़ लगाने का काम 1980 में शुरू किया. लेकिन उनके पेड़ों को गांव के बच्चे या जानवर नुकसान पहुंचाते थे. उनका पेड़ लगाना सफल नहीं हो रहा था. तभी सरकार ने चाय बागान लगाने की योजना शुरू की. जगदीश कुनियाल ने अपने खेत में चाय बागान लगा कर वहां एक चौकीदार रख दिया. इससे उनके पेड़ों की सुरक्षा होने लगी. फिर उन्होंने जमकर पेड़ लगाए और उन्होंने 10 एकड़ जमीन में 40-50 हजार पेड़ लगा दिए हैं. उनका चाय बागान भी ठीक हालत में है.
सूखे झरने को किया जिंदा, 300 परिवार लेते हैं पानी
इतने पेड़ों के लगने से वहां पर सूख चुके झरने में फिर से पानी लौट आया. अब तो गांव का झरना गर्मियों में भी नहीं सूखता है. इस पर करीब 300 परिवार पानी के लिए निर्भर हैं. जगदीश चंद्र कुनियाल ने अपने चाय बागान में दो लोगों को काम भी दिया हुआ है. उन दोनों लोगों का परिवार इसी चाय बागान से चलता है. जगदीश चंद्र कुनियाल की इस जमीन पर पहले केवल घास होती थी. वह साल में 30 हजार रुपये की घास बेच लेते थे. अब जबकि उन्होंने पेड़ लगा दिए हैं तो घास का बिकना बंद हो गया है.
पीएम मोदी ने मन की बात में की तारीफ
जगदीश चंद्र कुनियाल अपनी आजीविका के लिए राशन की एक दुकान चलाते हैं. उनके बच्चे भी पढ़-लिखकर नौकरी में लग गए हैं और उनकी मदद कर रहे हैं. गांव तक जब सड़क बनी तब जाकर कुछ पत्रकारों की नजर उनके काम पर पड़ी. उन्होंने इसको अपने अखबारों में छापा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यालय ने इसका संज्ञान लिया और इसकी सरकारी जांच कराई गई. जिसमें यह खबर सही पाई गई. जगदीश चंद्र कुनियाल के निस्वार्थ भाव से किए गए कार्य से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी प्रभावित हुए. उन्होंने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में इसकी चर्चा और सराहना भी की.
संघर्ष के दिनों में अच्छे काम करना नहीं छोड़ें
जगदीश कुनियाल की कोशिशों से फिर से जिंदा हुए झरने पर आज तीन सौ परिवार पानी के लिए निर्भर हैं. जो झरना सूख चुका था उसमें अब जगदीश चंद्र कुनियाल के प्रयास से पानी आने लगा है. जगदीश चंद्र कुनियाल का कहना है कि जब आपके संघर्ष के दिन हों तब भी आप अच्छे काम करना नहीं छोड़ें. इससे आत्म संतुष्टि मिलती है और इसका नतीजा आगे चलकर अच्छा ही होता है.
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और 5 एकड़ बंजर जमीन को हरियाली से भरने की योजना
जब जगदीश चंद्र कुनियाल के पेड़ लगाने से सूखे झरने से पानी निकलने लगा तो गांव के लोग भी उनके काम के महत्व को समझ गए. अब वे उनके पेड़ों को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं. जगदीश चंद्र कुनियाल अब अपनी एक और 5 एकड़ बंजर पड़ी जमीन पर पेड़ लगाने का काम शुरू कर चुके हैं. जगदीश चंद्र कुनियाल की योजना इस जमीन को भी पूरी तरह हरा-भरा करने की है. इस तरह जगदीश चंद्र कुनियाल ने पेड़ लगाकर प्रकृति संरक्षण का ऐसा काम किया है, जो करोड़ों रुपये खर्च करके भी सरकारें नहीं कर पा रही हैं.
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FIRST PUBLISHED : June 07, 2022, 17:12 IST