आतंकवादी जैसा प्रशिक्षण
सूत्रों के मुताबिक अक्टूबर-नवंबर में त्रिपुरा में हुए दंगों में पीएफआई ने मुसलमानों का ध्रुवीकरण किया है और उसे एकजुट कर हिंसक गतिविधियां अपनाने के लिए उकसाया. हाल ही में जो गिरफ्तारियां हुई हैं, उसमें पीएफआई के कैडर का अंसार अल इस्लाम के साथ घनिष्ठ संबंध सामने आया है. यह सब उसकी रणनीति का हिस्सा है. पीएफआई अपने कैडर को गैर-मुस्लिम संगठनों और व्यक्ति के खिलाफ खड़े होने के लिहाज से प्रशिक्षित करता है.
सूत्रों ने बताया कि उसका प्रशिक्षण ही इस तरह का आक्रामक है कि वह अन्य आतंकवादी समूहों में आसानी से फिट हो जाता है. पीएफआई कर्नाटक में सबसे ज्यादा सक्रिय है. कर्नाटक हिजाब विवाद में भी पीएफआई का हाथ सामने आया था.
2006 में हुई थी स्थापना
पीएफआई एक कट्टरपंथी इस्लामी संगठन है जिसकी स्थापना 2006 में नेशनल डेवलपमेंट फ्रंट (NDF), मनीथा नीथी पासराय और कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी (KFD) जैसे छोटे संस्थाओं के विलय के साथ हुई थी. पीएफआई के ज्यादातर सदस्य प्रतिबंधित स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया यानी सिमी (SIMI) के पुराने सदस्य हैं. कथित इस्लामिक भावना को ठेस पहुंचाने के आरोप में केरल में एक प्रोफेसर का हाथ काटने के पीछे पीएफआई सदस्यों का ही हाथ था.
यह भी पाया गया कि पीएफआई से संबंधित कुछ व्यक्ति सीरिया, इराक और अफगानिस्तान में इस्लामिक स्टेट से जुड़े. इनमें से कई आईएस से जुड़ाव के कारण भारत में गिरफ्तार भी हुए.
लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के जरिए असली चेहरा छिपाने की कोशिश
पीएफआई सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (SDPI) और लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भागीदारी कर अपने असली चेहरे को छुपाने की कोशिश में भी लगा है. लेकिन सूत्रों के मुताबिक विभिन्न धार्मिक बहसों, सांप्रदायिक दंगों और राजनीतिक विरोधियों की लक्षित हत्याओं में पीएफआई की भूमिका का पर्दाफाश हो चुका है. वर्तमान में पीएफआई पूर्वोत्तर में अपनी गतिविधियों को बढ़ाने की कोशिश कर रहा है. हाल ही पीएफआई कैडर का अंसार अल इस्लाम संगठन के साथ संबंध दक्षिणी राज्यों के लिए खतरे की घंटी है क्योंकि दक्षिणी राज्यों में पूर्वोत्तर के अधिकांश प्रवासी रहते हैं और यहां पीएफआई की मजबूत उपस्थिति है.
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June 07, 2022, 20:59 IST