शहपुरा (डिंडोरी) – नगर परिषद शहपुरा में पदाधिकारियों द्वारा मस्टर पर फर्जी नियुक्तियों का एक बड़ा मामला सामने आया है, जिसे पूर्व पार्षद राजेश चौधरी ने प्रशासन के समक्ष उजागर किया है। चौधरी ने कलेक्टर को एक विस्तृत लिखित शिकायत सौंपी है, जिसमें सूचना के अधिकार अधिनियम (RTI) के अंतर्गत प्राप्त दस्तावेज भी संलग्न किए गए हैं। इन दस्तावेजों के अनुसार परिषद अध्यक्ष, प्रभारी सीएमओ, शाखा प्रभारी और अन्य अधिकारियों ने मिलकर शासन के नियमों की खुली धज्जियां उड़ाते हुए अवैध नियुक्तियां की हैं, आर्थिक घोटाले को अंजाम दिया है और पारदर्शिता को तिलांजलि दी है।
शिकायत में खुलासा हुआ है कि नगर परिषद में बिना किसी सार्वजनिक सूचना, बिना आरक्षण रोस्टर के पालन और बिना आवश्यक दस्तावेजों की जांच के मस्टर कर्मियों को भर्ती किया गया। इतना ही नहीं, परिषद की बैठक में फर्जी प्रस्ताव तैयार कर उसे पास दिखाया गया और परिषद के नियमित कर्मचारियों को बाहर कर नए चेहरों को मोटी रकम लेकर मस्टर पर रख लिया गया। शिकायतकर्ता ने इस पूरी प्रक्रिया को “सुनियोजित भ्रष्टाचार” करार देते हुए इसकी सीबीआई या आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (EOW) से जांच की मांग की है।
फर्जी प्रस्ताव और चुपचाप की गई नियुक्तियां
राजेश चौधरी ने अपनी शिकायत में आरोप लगाया कि 09 अप्रैल 2025 की पीआईसी बैठक में एक फर्जी प्रस्ताव क्र. 16 के तहत पास दिखाया गया, जिसमें बिना परिषद सदस्यों की सहमति और जानकारी के मस्टर कर्मचारियों की नियुक्ति को मंजूरी दी गई। पी आई सी की बैठक दिनांक 09/04/25की बैठक का एजेंडा जारी किया गया है उसमें मस्टर में भर्ती किये जाने का एजेंडा था ही नही,शिकायत में कहा गया कि यह प्रस्ताव चोरी-छिपे तैयार किया गया और इसके पीछे आर्थिक लेन-देन की भूमिका स्पष्ट है। यह कार्रवाई नगर परिषद की गरिमा, पारदर्शिता और लोक विश्वास पर सीधा हमला है।
RTI दस्तावेजों ने खोली पोल
शिकायत के साथ RTI के तहत प्राप्त दस्तावेजों को संलग्न किया गया है, जिनसे कई विसंगतियां उजागर होती हैं। RTI में प्राप्त प्रश्नांक 01 से 58 तक की जानकारी में यह सामने आया है कि जल प्रदाय हेतु जिन 6 कर्मचारियों की अनुशंसा की गई थी, वहां वास्तव में 8 लोगों को रखा गया। फायर ब्रिगेड के लिए 4 की जगह 2 की नियुक्ति की गई। यह सीधे-सीधे नियुक्तियों में गड़बड़ी और फर्जीवाड़े को दर्शाता है।
बिना योग्यता, बिना प्रशिक्षण – फर्जी कर्मचारियों की भरमार
शिकायतकर्ता ने यह भी आरोप लगाया कि जिन कर्मचारियों को मस्टर पर रखा गया है, उनके पास न तो किसी प्रकार का शैक्षणिक प्रमाण पत्र है, न ही कोई तकनीकी प्रशिक्षण। फायर ब्रिगेड में लगाए गए कर्मचारी बिना किसी प्रशिक्षण के नियुक्त किए गए, जिससे जन-जीवन की सुरक्षा भी खतरे में पड़ी हुई है। वाहन चालकों के पास ड्राइविंग लाइसेंस तक नहीं है, और न ही कोई आवेदन पत्र फाइल में मौजूद है।
पुराने कर्मचारियों को हटाकर, रुपए लेकर नए भर्ती किए गए
सबसे गंभीर आरोप यह है कि नगर परिषद ने पहले से कार्यरत मस्टर कर्मचारियों को यह कहकर बाहर कर दिया कि परिषद की आर्थिक स्थिति खराब है। लेकिन इसी दौरान गुपचुप तरीके से रुपए लेकर नई भर्तियां कर ली गईं। पुराने कर्मचारियों को 4 से 5 महीने का वेतन भी नहीं दिया गया। जब उन्होंने पुनः नौकरी की मांग की तो उनसे दो-दो लाख रुपये की रिश्वत मांगी गई। यह पूरा घटनाक्रम भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा है, जो सीधे-सीधे गरीबों के पेट पर लात मारने जैसा है।
अपने पुत्र को रखा मस्टर पर, भुगतान पर खुद किए हस्ताक्षर
जल प्रदाय विभाग के शाखा प्रभारी शिवकुमार यादव पर आरोप है कि उन्होंने अपने ही पुत्र को अपने ही विभाग में मस्टर पर रखा और उसका भुगतान स्वयं हस्ताक्षर कर निकाला। यह न सिर्फ नैतिकता का उल्लंघन है बल्कि प्रशासनिक प्रणाली के साथ विश्वासघात है। शिकायतकर्ता का दावा है कि ऐसे और भी कई उदाहरण हैं जहां परिषद के पदाधिकारियों ने निजी लाभ के लिए अपने परिजनों को सरकारी नौकरी में घुसाया है।
तारीखों में घोटाला, दस्तावेजों की छेड़छाड़ उजागर
फाइल में दर्ज तारीखों से भी स्पष्ट होता है कि घोटाला संगठित और सुनियोजित था। फाइल में दिनांक 1 मई 2025 को प्रभारी सीएमओ द्वारा स्वीकृति दी गई, जबकि शाखा प्रभारी द्वारा उसी फाइल में कार्यदिशा हेतु स्वीकृति 30 अप्रैल 2025 को ली गई। इसका सीधा मतलब है कि स्वीकृति पहले दी गई और प्रक्रिया बाद में पूरी हुई, जो समय के क्रम में असंभव है और इससे यह साबित होता है कि फाइलों में जबरन फेरबदल की गई।
ठेकेदार को लाभ पहुँचाने के लिए हुई नियुक्तियां
शिकायत में एक और चौंकाने वाली बात सामने आई है कि अवैध रूप से मस्टर पर रखे गए कर्मचारी ठेकेदारों के कार्य में मदद कर रहे हैं। जनता के टैक्स के पैसे से भुगतान पाने वाले कर्मचारी ठेकेदारों के निजी हितों के लिए लगाए गए हैं। यह घोर आपत्तिजनक और सरकारी धन का दुरुपयोग है। इसका उद्देश्य परिषद अध्यक्ष और पदाधिकारियों को आर्थिक लाभ पहुंचाना और ठेकेदारों से हिस्सेदारी प्राप्त करना है।
न तो रोस्टर, न ही सूचना पत्र – पारदर्शिता गायब
शासन के स्पष्ट निर्देशों के बावजूद न तो आरक्षण रोस्टर का पालन किया गया और न ही नगर परिषद ने किसी प्रकार की सूचना आम जनता को दी। न ही कार्यालय के सूचना पटल पर जानकारी प्रदर्शित की गई और न ही नगर के प्रमुख स्थलों पर कोई सूचना चस्पा की गई। इससे यह स्पष्ट होता है कि नियुक्तियां पहले से तय व्यक्ति विशेष के लिए की गई थीं।
कर्मचारियों की पीड़ा – चक्कर काट रहे हैं कार्यालय के
कई पुराने मस्टर कर्मचारी अब भी वेतन पाने के लिए नगर परिषद कार्यालय के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन उनकी कोई सुनवाई नहीं हो रही है। उधर, नए भर्ती कर्मचारी बिना किसी प्रमाण पत्र या अनुभव के नियमित भुगतान पा रहे हैं। यह दोहरी नीति प्रशासन और व्यवस्था दोनों के लिए शर्मनाक है।
मामला गंभीर, जांच की मांग
पूर्व पार्षद राजेश चौधरी ने इस पूरे मामले को लेकर कलेक्टर से निष्पक्ष जांच की मांग की है। उन्होंने यह भी कहा कि यदि जल्द कार्रवाई नहीं की गई तो वे उच्च न्यायालय और भ्रष्टाचार विरोधी संस्थानों का दरवाजा खटखटाएंगे।
रिपोर्ट लीलाराम साहू डिंडोरी

