Friday, March 14, 2025

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फ्रांस में PM मोदी ने कुछ ऐसा किया.. फैन हो गए संजय राउत, बोले- हमारे लिए गर्व की बात

फ्रांस में PM मोदी ने कुछ ऐसा किया.. फैन हो गए संजय राउत, बोले- हमारे लिए गर्व की बात

मुंबई आशीष सिंह

इन दिनों अमूमन प्रधानमंत्री पर हमलावर रहने वाले संजय राउत पीएम मोदी के एक कदम के फैन हो गए. हुआ यह कि पीएम मोदी तीन दिवसीय फ्रांस दौरे के अंतिम चरण में मार्सिले शहर पहुंचे जहां उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीर सावरकर से जुड़े एक ऐतिहासिक स्थल पर पहुंचकर उन्हें श्रद्धांजलि दी.

इस जगह की कहानी को जानने से पहले यह पढ़िए कि संजय राउत ने इस पर क्या कहा. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री का वहां जाना और सावरकर को श्रद्धांजलि देना सराहनीय है. उन्होंने क्लियर किया कि इसमें कोई राजनीतिक विवाद नहीं होना चाहिए बल्कि यह पूरे देश के लिए गर्व की बात है.

‘राजनीतिक खींचतान से बचने की सलाह’

असल में संजय राउत ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि वीर सावरकर भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी रहे हैं. उन्होंने कहा कि अगर प्रधानमंत्री उस ऐतिहासिक स्थल पर गए जहां से वीर सावरकर ने ब्रिटिश कैद से निकलने की कोशिश की थी तो यह गौरव का विषय है. हम इसका स्वागत करते हैं. राउत ने इस मुद्दे पर किसी भी तरह की राजनीतिक खींचतान से बचने की सलाह दी और कहा कि वीर सावरकर का योगदान किसी एक विचारधारा तक सीमित नहीं है बल्कि वह पूरे देश के लिए प्रेरणा स्रोत हैं.

सावरकर के साहस और बलिदान को नमन
मार्सिले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वीर सावरकर के साहस और बलिदान को नमन किया. उन्होंने कहा कि मार्सिले का भारत की आजादी के संघर्ष में विशेष स्थान है. वीर सावरकर ने यहीं से ब्रिटिश कैद से भागने का प्रयास किया था. मैं मार्सिले के उन नागरिकों और फ्रांसीसी कार्यकर्ताओं का भी आभार व्यक्त करता हूं जिन्होंने उस समय सावरकर को ब्रिटिश अधिकारियों को सौंपने का विरोध किया था. वीर सावरकर की बहादुरी आज भी हमारी पीढ़ियों को प्रेरित करती है.

फ्रांस के मार्सिले बंदरगाह पर
बता दें कि वीर सावरकर और मार्सिले का ऐतिहासिक संबंध 8 जुलाई 1910 से जुड़ा है, जब ब्रिटिश सरकार उन्हें एक राजनीतिक कैदी के रूप में लंदन से भारत ले जा रही थी. इसी दौरान जब उनका जहाज ‘एस एस मोरिया’ फ्रांस के मार्सिले बंदरगाह पर पहुंचा तो सावरकर ने पोर्टहोल के माध्यम से निकलने की कोशिश की. इस घटना ने ब्रिटेन और फ्रांस के बीच कूटनीतिक तनाव भी पैदा किया था क्योंकि फ्रांस का कहना था कि सावरकर को ब्रिटिश अधिकारियों को सौंपना अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन था.

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