ओडिशा के पुरी के साथ देशभर में निकाली जा रही जगन्नाथ यात्रा,विदिशा जिले के मनोरा धाम में 200 साल पुराने मंदिर से जुड़ी अद्भुत मान्यता
ओडिशा के पुरी में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा शुक्रवार से शुरू हो गई है. इसके साथ ही देश के अलग-अलग हिस्सों में भी रथ यात्रा निकाली जा रही है. मध्य प्रदेश के विदिशा जिले से लगभग 35 किलोमीटर दूर स्थित ग्राम मानोरा है. जहां भगवान जगदीश स्वामी (जगन्नाथ) का प्राचीन मंदिर स्थित है. यह मंदिर आज भी आस्था का जीवंत प्रतीक है. जिसे स्थानीय जनमान्यता के आधार पर ‘मिनी जगन्नाथ पुरी’ का दर्जा प्राप्त है.
मानकचंद की आस्था और पदयात्रा से बना मंदिर
इतिहासकार गोविंद देवलिया के अनुसार, लगभग 200 वर्ष पूर्व ग्राम मानोरा के जमींदार माणकचंदजी भगवान जगन्नाथ के परम भक्त थे. पुत्र प्राप्ति की मनोकामना लेकर उन्होंने अपनी पत्नी पद्मावती के साथ पैदल ही ओडिशा के पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर की कठिन यात्रा शुरू की. पुरी में दर्शन के बाद, उन्होंने भगवान से प्रार्थना की कि वे ग्राम मानोरा में निवास करें.
मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ ने दर्शन देकर माणकचंद जी को आदेश दिया कि वे ग्राम में उनका मंदिर बनवाएं. यह भी वादा किया कि वह हर साल एक बार रथ यात्रा के माध्यम से मानोरा पधारेंगे. इसी भावना से प्रेरित होकर माणकचंद ने ग्राम में मंदिर का निर्माण कराया. मंदिर के पीछे ही माणकचंद और उनकी पत्नी की समाधि आज भी स्थित है.

मंदिर और रथ यात्रा की विशेष मान्यता
इस मंदिर में हर साल जगन्नाथ जी की पुरी रथ यात्रा के दिन ग्राम मानोरा में भी रथ यात्रा निकाली जाती है. रथ यात्रा से एक दिन पूर्व ही बड़ी संख्या में श्रद्धालु ग्राम में जुटने लगते हैं. शाम को भगवान को भोग लगाकर मंदिर के पट बंद कर दिए जाते हैं. रात में मंदिर में कोई नहीं रहता, लेकिन सुबह 4 से 5 बजे के बीच अपने आप पट खुलने की ध्वनि या कंपन महसूस होती है. जिसे भगवान के आगमन का संकेत माना जाता है.
इसके बाद भव्य आरती होती है और फिर भगवान को रथ में विराजित किया जाता है. इस रथ में कंपन महसूस होना आम बात मानी जाती है. भक्त इसे चमत्कार मानते हैं. भक्तगण रस्सियों से रथ को खींचते हुए पूरे ग्राम में यात्रा निकालते हैं. इतना ही नहीं, मान्यता है कि पुरी में भी इस क्षण घोषणा होती है कि भगवान विदिशा जिले के मानोरा में पधारे हैं और दो मिनट के लिए वहां की रथ यात्रा रोकी जाती है.

भक्तिभाव और मेला
यह आयोजन केवल विदिशा ही नहीं, रायसेन, सागर, भोपाल, गुना और अन्य जिलों से भी श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है. कुछ पैदल यात्रा करते हैं, तो कुछ भजन-कीर्तन करते हुए मानोरा पहुंचते हैं. यहां तीन दिन का मेला भी भरता है. जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं. स्थानीय प्रशासन को हर साल सागर रोड पर डायवर्शन करना पड़ता है, ताकि यातायात नियंत्रित रहे.

परंपरा से आधुनिकता तक का सफर
इतिहासकार गोविंद देवलिया बताते हैं कि “पहले भगवान की यात्रा बैलगाड़ी से निकाली जाती थी. बाद में लकड़ी के रथ पर यह परंपरा शुरू हुई. पहले रात में मशालों की रोशनी में मेला भरता था, अब बिजली, माइक, सीसीटीवी कैमरों और हेल्पलाइन की सुविधाएं जुड़ चुकी हैं. आज यह आयोजन आस्था और आधुनिक प्रबंधन का संगम बन चुका है. जहां 1 लाख से अधिक श्रद्धालु पहुंचते हैं और अपनी मनोकामना पूरी होने की आस्था के साथ भगवान जगदीश स्वामी की रथ यात्रा में भाग लेते हैं.

विदिशा के बड़ी बजरिया जय स्तंभ चौक से हर वर्ष की तरह इस बार भी भक्तों ने पूरी श्रद्धा और उत्साह के साथ मनोरा धाम के लिए पदयात्रा निकाली. दीपक तिवारी मित्र मंडली द्वारा आयोजित यह वार्षिक पैदल यात्रा बड़ी धूमधाम से शुरू हुई. डीजे पर भजन, ढोल की गूंज के बीच सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु यात्रा में शामिल हुए. मनोरा धाम तक की लगभग 35 किलोमीटर की दूरी पैदल तय कर रहे हैं. यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं में जबरदस्त उत्साह देखने को मिला. यह यात्रा मानोरा धाम पहुंचेगी. जहां जगदीश स्वामी के दर्शन कर का लाभ लेंगे.