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Homeधर्म“शत्रु के प्रति श्रद्धा श्री राम के चरित्र से सीखे”

“शत्रु के प्रति श्रद्धा श्री राम के चरित्र से सीखे”

“शत्रु के प्रति श्रद्धा श्री राम के चरित्र से सीखे”
आज रामनवमी है। चैत्र का महीना इस नव वर्ष शुरू होते ही इस रत्न- प्रसुता हमारी मातृभूमि को नवचेतना देने, सोये मानव को जगाने और अर्थ -चेतन मन में नव चेतना भरने के लिए महापुरुषों का आगमन होने लगा था। चैत्र महीने में राम का अवतार हुआ था।यह मातृभूमि अवतारों की भूमि है, तीर्थ -तीर्थंकरों की तीर्थ भूमि है ,संतों की पुण्य भूमि है ,सदियों से बाद भी राम जैसे महापुरुषों की कृत्य मानव मन पर अमित छाप लगाए हुए हैं उनमें श्री राम एक उत्कृष्ट स्थान है
हिंदू धर्म में रामनवमी का विशेष महत्व माना गया है । चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में की नवमी तिथि को भगवान श्री राम का राजा दशरथ के घर जन्म हुआ था । कहा जाता है, कि धरती पर असुरों का सऺहारे करने के लिए भगवान विष्णु ने त्रेता युग में श्री राम के रूप में अवतार लिया। वर्तमान में भी चैत्र शुक्लपक्ष नवमीं प्रभु श्री राम के जन्मोत्सव के रूप में विख्यात है। त्रेता युग में श्री राम ने राक्षसों के आतंक से इस मातृभूमि को मुक्त करने के सुख, शांति और समद्ध राज्य की नींव रखी थी। श्री राम अपनी जीवन में मनसा, वाचा ,कमर्यणा को भी प्रतिज्ञा की ,उसे मनोयोग से पूर्ण किया ।
श्री राम मर्यादा पुरुषोत्तम का चरित्र हर प्राणी में स्वावलंबन की भावना को जागृत करता हैं।भारतीय मनीषा इस तथ्य से अवगत है। किसी राम का चरित्र औरों से बिल्कुल अलग है। अपने से भिन्न और दूसरे के लिए जैसा सम्मान का भाव राम के चरित्र में वैसा दूसरों के चरित्र में नहीं है !
राम मनोहर लोहिया ने यही लक्ष्य तय किया है कि राम बोलते हैं कम, दूसरों की सुनते हैं ज्यादा, देखा गया कि श्री राम का पूरा जीवन त्याग, मर्यादा ,संयम और धैर्य का परिचायक रहा । विषम परिस्थितियों में भी वे नीति सम्मत रहे। स्वयं की भावनाओं एवं सुकून से समझौता कर सदा धर्म और सत्य का साथ दिया । सहनशीलता एवं धैर्य मर्यादा पुरुषोत्तम के जीवन में विशेष गुण थे।14 वर्ष वन में सन्यासी की भांति जीवन बिताना उनकी सहनशीलता की पराकाष्ठा थी। वनवास के समाचार से उनके मुख्य मंडल पर तनिक भी प्रभाव नहीं पड़ा था। बड़ी विनम्रता से पिता की आज्ञा को शिरोधार्य माना ।श्री राम ने सिखाया की उतार-चढ़ाव तो जीवन का अंग है, उनके व्यवहार में शांत, गंभीर और सौम्य प्रभु श्री राम ने अपना संतुलन नहीं खोया। राम कथा से ज्ञात होता है, कि कैसे श्री राम ने अपने विरोधी या शत्रु से भी सीखने की वरीयता दी ,रावण उनका शत्रु था, लेकिन श्री राम ने अपने अनुज लक्ष्मण को इस बात की प्रेरणा दी, कि रावण पर देवी सरस्वती की कृपा है ,वह महान ज्ञानी है, इसलिए उसे सम्मान से पेश आना चाहिए। यह बात श्री राम ने लक्ष्मण को तब कहीं थी । जब सीता को हरण के बाद अशोक वाटिका में ठहरने की जानकारी मिली। जब सीता अशुर रावण ने कैद में थी । तब श्री राम रावण से भी टकराने में कोई परवाह नहीं की। भगवान राम से सिर्फ प्रेम ही नहीं, पराक्रम भी सीखने को मिलता है । उनसे ज्यादा शांतिप्रिय इस मातृभूमि पर और कोई नहीं हुआ । इन ही राम ने अन्याय होने पर धनुष उठाने में भी देरी नहीं की । रामेश्वरम में उन्होंने समुद्र को चेतावनी दी थी, कि अगर तुम मुझे पत्नी को छुड़ाने के लिए रास्ता नहीं दोगे, तो मैं अपने बाण से तुम्हें सुख दूंगा। प्रेम, शांति और शौर्य तीनों में भगवान राम से बड़ा आदर्श कोई नहीं है, क्योंकि वे अपनी सीमाओं में रहना जानते थे, इसलिए उन्हें श्री राम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहते हैं।
अंत में यही कहा जा सकता राम का विशाल हृदय, प्रेम प्राणी के प्रति वात्सल्य, स्नेह, करुणा से परिपूर्ण था । शत्रुओं के प्रति भी उनमें वैर -भाव नहीं थे, रावण के वध के पश्चात उन्होंने पूरे विधि -विधान से उनका अंतिम संस्कार करवाया शत्रु के प्रति ऐसे श्रेष्ठ व्यवहार का उदाहरण अन्यत्र कहीं नहीं मिलता है । डॉ बी, आर ,नलवाया, मंदसौर

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