कविता तो नही लिख पाएंगे , कुछ बिखरे हुए शब्द उन मजदूरों भावना प्रकट जरूर लिखने के माध्यम से कर सकता हूं पत्रकार सतेंद्र जैन ✍🏻
देखा मैने शहर को बसते हुए
बहुत सारी मंजिले एक के ऊपर एक खड़ी थी , मगर
उन्हे थामे रखने के लिए , बहुत से मजदूरों ने अपनी खुशियां
उन आकाश को छूती मंजिलों की नीव में रख छोड़ी थी ,
नीव को मजबूती देता है , नीव का पत्थर , अब तक यही सुना था
लेकिन राज ये आज ही जाना के ,
उस नीव के पत्थर को भी थामे रखता है ,
मजदूर का फ़ौलादी कलेजा , जिसका स्पंदन उस इमारत
में सकारात्मक ऊर्जा को हर पल हर घड़ी बनाए रखता है
मजदूर का फ़ौलादी कलेजा ,
जो उसने अपने मासूम बच्चों की चन्द खुशियों के लिए
उस नीव के पत्थर के नीचे रख छोड़ा है , ताकि
उसके बच्चो को दो वक्त को वो रोटियां मिल सके , जो
हम छोड़ देते है , अपनी थाली में यूंही , यह कहकर की अब
और नही खा सकते ।
देखा मैने भवनों को बनते हुए , रेत , सीमेंट , पत्थर और गारे
के मिश्रण से तैयार होते हुए , लेकिन एक मजदूर ने बताया के
इस मिश्रण को मजबूती दी मेरे शरीर से बहे ,
पसीने और लहू ने ,
आपने सिर्फ पैसा लगाया है , साहब
लेकिन हमने अपनी संवेदनाएं और भावनाएं लगा दी है ,
इस भवन को तैयार करने में ,
आप खाली हाथ घर चले जाए , तो कोई बात नही , लेकिन
हम अगर खाली हाथ घर जायेगे , तो हमारा परिवार भूखा सोएगा
रात को उठके मुन्ना रोएगा ।
उसके रोने से लोगो की नींद में खलल पड़ेगा , लेकिन
वो यह कभी नहीं जानना चाहेंगे के , आधी रात मुन्ना क्यूं रोया??
क्युकी इस दुनियां को जीतने के लिए , उन्होंने अपने शरीर की
संवेदनाओं और भावनाओं के तार काफी पहले काट दिए है ।
हम मजदूर है , नित नई इमारतें बनायेगे , लेकिन साहब जी ,
कभी एक कमरा भी उन इमारतों का हम , अपने और अपने
परिवार के लिए खरीद नही पाएंगे ,
इन इमारतों , भवनों , होटलों , घरों की नीव में रखी हुई है
हमारे नगे , भूखे बच्चो की इच्छाएं ,
वहा नीव के पत्थर के पास , इन मासूम बच्चों की किताबे
रखी हुए है ,
यह बच्चे चाह कर भी पढ़ नही पाएंगे , साहब
कौन इन्हे पढ़ाएगा , जीवन का कहकहरा ,
यह क्या जाने किन किताबो को पढ़कर कोई वकील बनता है
यह तो वो बदनसीब है , साहब
जिनका मुकदमा भी कोई वकील नही लड़ना चाहेगा
यह नही जानते , साहब , के किस किताब को कंठस्थ करके
चार्टेड एकाउंटेंट बना जाता है ,
इनकी उंगलियों पर ही इनका हिसाब किताब चलता रहेगा
यह मासूम नही जानते की किन किताबो को पढ़कर ,
योग्य डॉक्टर बना जाता है ,
यह तो उन लोगो में शामिल है , साहब ,
जिनके शरीर को लगा रोग , बिना इलाज व दवा के , इन्हे अपने
साथ ही लेकर जाएगा ।
उस नीव के पत्थर पर कभी कान लगाना , साहब
आपको सुनाई देगी , हमारे सपनो के टूटने की आवाजे ,
पैरो में पहनी हुई टूटी हुई चप्पलों की आवाजे
यह मासूम मेरी ही तरह , कभी सूट और बूट नही पहन पाएंगे
हां , मामूली सी गलती होने पर ,
सूट बूट पहने सभ्य और पढ़े लिखे लोगो की गालियां , और लात
जरूर खायेगे ।
भूखे है ना जनाब , तो जो कुछ मिलता वही खा लेते ।
उस नीव के पत्थर के पास , आपको मिलेगे हमारी आंखों से
बहे आसू ,
उन आसुओं में हमारी जिन्दगी डूबी हुई मिलेगी आपको , साहब
हो सके तो हमारी जिन्दगी पर कोई किताब लिखना , साहब
शायद आपकी किताब पढ़कर कुछ लोगो का जमीर जाग जाए
हमको हमारा वाजिब हक मिल जाए
कभी तो वक्त आएगा , साहब
जब मजदूर भी मालिक बन पाएगा , उन कल कारखानों का
उन होटलों व भवनों व घरों का , जिन्हे उसने अपनी मेहनत से
खड़ा किया है , तैयार किया है ।
दुआ कीजियेगा जनाब , सुना है आपकी दुआ फल जाती है ।
मजदूर को तनखाह नही , दिहाड़ी मिलती है , साहब
दिन ढलते ढलते , दिहाड़ी खर्चों में निपट जाती है , और
अंधेरी रात बाकी रह जाती है ,
एक काली अंधेरी स्याह रात , जिसका सवेरा नही आता ।।
जिसका सवेरा नही आता ,
मजदूर ताउम्र मजदूर ही रहता है , मालिक नही बन पाता
मालिक नही बन पाता