सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के विवादित फैसले पर स्वत: संज्ञान लिया है. बुधवार को इस पर सुनवाई होगी.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने नाबालिग के साथ रेप की कोशिश से जुड़े एक मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट के 17 मार्च को दिए विवादित फैसले पर स्वत: संज्ञान लिया है. जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच बुधवार को इस मसले पर सुनवाई करेगी. हाई कोर्ट की इस टिप्पणी ने पूरे देश में भारी आक्रोश पैदा कर दिया है.
हाई कोर्ट ने कहा था ‘पीड़िता के ब्रेस्ट को पकड़ना और पायजामे का नाड़ा तोड़ना और उसे पुलिया के नीच खींचने की कोशिश करना रेप के प्रयास के आरोप लगाने के लिए पर्याप्त नहीं है. हाई कोर्ट ने कहा था कि ये कृत्य केवल ‘तैयारी’ को दर्शाता है, जो अपराध करने के असल प्रयास से अलग है.
दरअसल, आरोप था कि एक नाबालिग लड़की के प्राइवेट पार्टस को पकड़ा गया और पायजामे का नाड़ा तोड़कर घसीटते हुए पुलिया के नीचे ले जाया गया. मामले में दो आरोपियों पर रेप की कोशिश करने का आरोप लगा था.
जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा की सिंगल बेंच ने दो आरोपियों द्वारा दायर पुनरीक्षण याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए यह टिप्पणी की थी. हाईकोर्ट, ट्रायल कोर्ट के उस आदेश के खिलाफ एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें दोनों आरोपियों को आईपीसी की धारा 376 (बलात्कार का प्रयास) के साथ यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम की धारा 18 के तहत मुकदमे का सामना करने के लिए बुलाया गया था.
हाईकोर्ट ने कहा था कि बलात्कार के प्रयास का आरोप लगाने के लिए अभियोजन पक्ष को यह स्थापित करना होगा कि कृत्य तैयारी के चरण से आगे बढ़ चुका था. अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया था कि, आरोपी ने पीड़िता के ब्रेस्ट को पकड़ा, उसके निचले वस्त्र की डोरी को तोड़ा और उसे पुलिया के नीचे खींचने का प्रयास किया, लेकिन गवाहों के बीच बचाव करने पर भाग गया.
मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुनवाई करते हुए कहा कि, पीड़िता के निजी अंगों को छूना, उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ना और उसे खींचकर भागने का प्रयास करना, रेप या रेप की कोशिश अपराध के अंतर्गत नहीं आएगा. इसे यौन उत्पीड़न जरूर कहा जाएगा. इस पर सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने स्वत: संज्ञान लेते हुए बुधवार को इस मामले की सुनवाई करेगा.