- धार्मिक नगरी की प्राचीन धरोहरों को बचाने के लिए कोई आगे नहीं आ रहा है। हजारों साल पुरानी ऐतिहासिक महत्व की धरोहरों को सुरक्षित रखना मुश्किल है।
केशवरायपाटन. धार्मिक नगरी की प्राचीन धरोहरों को बचाने के लिए कोई आगे नहीं आ रहा है। हजारों साल पुरानी ऐतिहासिक महत्व की धरोहरों को सुरक्षित रखना मुश्किल है। यहां धार्मिक, पर्यटन एवं पुरातत्व महत्व के अनेक स्थान है, जो अब विरान पड़े हैं।
जर्जर हो चुके मंदिर, स्मारक, चंबल के घाटों को बजट की दरकार है। चंबल नदी किनारे पांच सौ साल पहले भगवान केशवराय का मंदिर का निर्माण किया गया। मंदिर की सुरक्षा के लिए नदी के किनारे बुर्जे बनाई गई। देखरेख के अभाव में बुर्जे जर्जर होती जा रही है। बुर्जों के अंदर मिट्टी के धंसने से गड्ढे हो चुके हैं। एक बुर्ज में तो जमीन काफी मात्रा में धंस गई है। बुर्ज निर्माण के बाद बनाए गए कमरों में राजकीय प्राथमिक विद्यालय चलाया गया था, लेकिन शिक्षा विभाग ने भी मरमत के नाम पर कुछ भी नहीं किया। अब वह कमरे जर्जर हो चुके हैं। पटान उखड़ गया है। देवस्थान विभाग के अधीन इन बुर्जों की मरमत दो दशक पहले करवाई गई थी। बुर्ज की मरम्मत एवं रखरखाव नहीं किया गया तो केशव मंदिर परिसर को खतरा उत्पन्न हो सकता है।
उपेक्षा का शिकार
चंबल के किनारे पग-पग पर पौराणिक धरोहर है। उनका संरक्षण नहीं होने से चबल का सौंदर्यकरण बिगड़ा हुआ है। चंबल नदी किनारे पर्यटन को बढ़ाने देने के लिए छतरियों का निर्माण करवाया था, लेकिन वह चंबल नदी के पानी के बहाव को नहीं झेल पाई। पचास लाख की लागत से बनाई छतरियों की जांच तक नहीं हो पाई। बुर्ज एक तरह से मंदिर की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण स्तंभ है, जो भी अब जर्जर होने लग गई। लोगों ने देवस्थान विभाग से बुर्ज की मरमत करवाने की मांग की है। चंबल नदी किनारे संरक्षण के अभाव में पौराणिक धरोहर व चबूतरों पर उकेर रखी कलाकृतियों को बचाने की दरकार है। मंदिर का शिखर भी जर्जर हो चुका है।
यात्रियों के ठहराव की व्यवस्था नहीं
धार्मिक नगरी में तीर्थ यात्रियों के ठहराव के लिए सुविधाएं नहीं होने से यहां श्रद्धालुओं का ठहराव नहीं हो पा रहा है। केशव मंदिर के सहारे चंबल नदी जाने वाले रास्ते पर स्थित राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय के भवन को अब यात्रियों के लिए धर्मशाला में बदलने की मांग उठती जा रही है। पार्षद राजेश सैनी, राम सिंह गुर्जर ने बताया कि यहां पर श्रद्धालु आते हैं, लेकिन उनके ठहरने की व्यवस्था नहीं होने से परेशानी उठानी पड़ती है। प्रशासन पुराने विद्यालय को ठीक करवा कर इसे धर्मशाला का स्वरूप दे दे तो यात्रियों के ठहरने की व्यवस्था हो सकती है। यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिए शहर में रात्रि ठहराव की व्यवस्था नहीं होने से यहां आने वाले यात्रियों को शहर छोड़ कर रात रूकने के लिए कोटा जाना पड़ता है।